5 अगस्त को अयोध्या में भूमि पूजन से पहले कुछ दिन से ट्विटर पर भी वर्चुअल वार चल रही है. 4 अगस्त यानी मंगलवार को ट्विटर पर #ModiDumpsFakeSecularism ट्रेंड हुआ. इसमें कई यूजर्स ने एक पुरानी फोटो पोस्ट करते हुए लिखा कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी जबकि जवाहर लाल नेहरू ने इसका विरोध किया था.

Ramesh Solanki @Rajput_Ramesh ने 4 अगस्त को ट्वीट किया,
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के समारोह में शामिल हुए थे जबकि नेहरू ने इसका विरोध किया था.
ओरिजनल मैसेज
Shri Rajendra Prasad, the first President of India attended the Somnath Temple Inaugration even though Nehru opposed it
#ModiDumpsFakeSecularism
Amar Prasad Reddy @amarprasadreddy ने भी 4 अगस्त को ट्वीट किया, दो प्रधानमंत्रियों में अंतर देखिए. इस वजह से हमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गर्व है.
पीएम रहते हुए जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के समारोह का निमंत्रण नहीं स्वीकार किया था.
प्रधानमंत्री रहते हुए पीएम मोदी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के भूमि पूजन में शामिल होंगे.
ओरिजनल मैसेज
The Difference between two PM’s. Which make us proud on PM Sh. @narendramodi Ji.
Nehru as PM: He rejected the invitation to attend Somnath mandir’s Bhumi-Pujan.
Modi Ji As PM: He is going to attend the Bhumi Poojan of the Grand Ram Temple at Ayodhya.
The News Postmortem ने इन बयानों की गहराई में जाने के लिए गूगल पर खोजबीन शुरू की. गूगल पर फोटो रिवर्स इमेज पर डालने पर यह फोटो सही निकली. फोटो उस समय की है जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद सोमनाथ मंदिर के समारोह में शामिल हुए थे. बात 11 मई 1951 की है.

अब पहले हम बात करते हैं सोमनाथ मंदिर के इतिहास की. सोमनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में एक है. विकीपीडिया के अनुसार, ईसा से पहले यह मंदिर अस्तित्व में आया था. सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था. सिन्ध के अरबी गवर्नर जुनायद ने 8वीं सदी में मंदिर को नष्ट करने के लिए सेना भेजी। 815 ईस्वी में में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने तीसरी बार इसका पुनर्निर्माण कराया. इसकी महिमा और प्रसिद्धि महमूद गजनवी तब पहुंची तो सन् 1024 में उसने मंदिर पर हमला कर दिया. 5 हजार साथियों के साथ एक महूद गजनवी ने मंदिर की सारी संपत्ति लूट ली. वह मंदिर को नष्ट करके चला गया. उसने मंदिर के अंदर प्रार्थना कर रहे लोगों का कत्लेआम कर दिया था.

Newsbharati के मुताबिक, 14वीं सदी में अलाउदीन खिलजी ने मंदिर पर हमला कर इसे लूटा और नष्ट कर दिया. जूनागढ़ के राजा महीपाल इस मंदिर का फिर से निर्माण कराया. 14वीं सदी के अंत में गुजरात के गर्वनर जफर खान ने सोमनाथ में मस्जिद की स्थापना कर दी. इस पर विद्रोह हो गया. 1394 में मुजफ्फर खान ने एक बार फिर मंदिर को नष्ट कर दिया लेकिन लगातार आक्रमण के बावजूद 1669 तक यह हिंदुओं के लिए पवित्र स्थल बना रहा. फिर औरंगजेब ने इसे नष्ट करने का आदेश दिया. 1701 में औरंगजेब ने इसे इस तरह नष्ट करने का आदेश दिया कि यह दोबारा न बन सके. 1706 में उसने मंदिर को फिर गिरा दिया. उस वक्त एक मराठा सरदार धानजी जाधव ने औरंगजेब को टक्कर दी थी और सौराष्ट्र में आक्रमण किया था. 1753 में मराठाओं ने अहमदाबाद को अपने कब्जे में ले लिया था. 1783 में रानी अहिल्याबाई ने पुराने मंदिर के पास नए मंदिर का निर्माण कराया था.

Indian Express के अनुसार, माना जाता है कि सोमनाथ मंदिर को बनवाने की शुरुआत 1947 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की थी. 12 नवंबर 1947 को जूनागढ़ में आयोजित एक सभा में उन्होंने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. जूनागढ़ के नवाब के पाकिस्तान जाने के बाद भारत ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था. दिल्ली आने के बाद जब सरदार पटेल, डॉ. केएम मुंशी और मंत्री एनवी गाडगिल महात्मा गांधी के पास गए तो उन्होंने इसका स्वागत किया. हालांकि, उन्होंने कहा कि इसका खर्च सरकार नहीं बल्कि आम जनता को उठाने दो. इसके बाद एक ट्रस्ट का गठन हुआ. मुंशी को इसका चेयरमैन बनाया गया.

India Today के मुताबिक, ज्योतिर्लिंग की स्थापना सोमनाथ प्रोजेक्ट का हिस्सा थी. दिसंबर 1950 में सरदार पटेल का निधन होने के बाद केंद्रीय मंत्री केएम मुंशी के हाथ में प्रोजेक्ट की पूरी कमान आ गई. जवाहर लाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण कार्य का विरोध किया था. मंदिर का फिर से निर्माण होने के बाद 1951 में केएम मुंशी ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद को इसके लिए आमंत्रित किया. नेहरू को यह पसंद नहीं था कि राष्ट्रपति मंदिर के समारोह में जाएं. इसके लिए उन्होंने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पत्र लिखा लेकिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने समारोह में शामिल होने का फैसला किया. मई 1951 में उन्होंने मंदिर में ज्योतिर्लिंग स्थापित किया था.
आज तक के अनुसार, सोमनाथ मंदिर में शामिल होने को लेकर जवाहर लाल नेहरू और डॉ. राजेंद्र प्रसाद में गतिरोध उत्पन्न हुआ था. नेहरू का मानना था कि इंडिया एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है. अगर राष्ट्रपति इस तरह के कार्यक्रमों में शामिल होंगे तो इससे गलत संदेश जाएगा.
Postmortem रिपोर्ट: सोमनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग की स्थापना डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी. समोराह में शामिल होने को लेकर नेहरू और राजेंद्र प्रसाद में गतिरोध भी उत्पन्न हुआ था. नेहरू ने इसका विरोध किया था.