5 अगस्त को अयोध्या में राम मंदिर का भूमि पूजन होगा. इसके साथ ही अफवाह उड़ी कि जमीन में एक टाइम कैप्सूल गाड़ा जाएगा. इसमें राम मंदिर ये जुड़े कई साक्ष्य और ऐतिहासिक जानकारियां होंगी. इन सबूतों को जमीन के अंदर सुरक्षित राा जाएगा, जिससे भविष्य में लोगों को इस बारे में पता रहे. इन सबके बीच एक ट्वीट में दावा किया गया कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लाल किले के सामने 15 अगस्त 1973 को एक टाइम कैप्सूल दफन किया था.

क्या है ट्वीट में ऑथर और कॉलमिस्ट Anand Ranganathan @ARanganathan72 ने 26 जुलाई को ट्वीट किया,
15 अगस्त 1973 को इंदिरा गांधी ने लाल किले के सामने एक टाइम कैप्सूल दफनाया था. इसे करीब 5000 साल के लिए रखा गया था. इसमें मौजूद रहस्य को कभी जनता के सामने नहीं लाया गया. उसमें ऐसा क्या रहस्य था.
आजादी के बाद के 25 साल को सुरक्षित रखने का प्रयास
आयरन लेडी इंदिरा गांधी द्वारा टाइम कैप्सूल दफन करने की और गहन जानकारी निकालने के लिए The News Postmortem की टीम ने गूगल की सहायता ली. Daily Hunt के अनुसार, 1970 के समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सफलता के शिखर पर थीं. उस समय आजादी के 25 साल के इतिहास को सुरक्षित रखने कह बात उठी. इसके लिए टाइम कैप्सूल बनाने का सुझाव दिया गया. इंदिरा गांधी की सरकार में इस टाइम कैप्सूल को कलपत्र नाम दिया गया. 1977 में कांग्रेस से सत्ता छिन गई और मोरारजी देसाई नेतृत्व में देश में जनता पार्टी की सरकार बनी. चुनाव से पहले जनता पार्टी ने टाइम कैप्सूल की सच्चाई पता कराने का जनता से वादा किया था. सरकार बनने के कुछ दिन बाद टाइम कैप्सूल तो जमीन से निकाल लिया गया लेकिन उसमें है क्या, इसका पता नहीं चला. 2012 में मानुषी मैग्जीन संपादक मधु किश्वर ने पीएमओ को इस बारे में जानकारी मांगी. उनको जवाब मिला कि इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.

15 अगस्त को किया दफन
Indiatoday के मुताबिक, 15 अगस्त 1973 को लाल किले के सामने इंदिरा गांधी ने टाइम कैप्सूल को दफन किया था. इसे जमीन से 32 फीट नीचे गाड़ा गया था. इसमें आजादी के बाद के 25 साल का इतिहास था, जिसमें 10 हजार शब्दों में समेटा गया था. 8 दिसंबर 1977 को जनता पार्टी की सरकार में इस टाइम कैप्सूल को जमीन से निकाला गया था. तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री P.C. Chunder और अन्य राजनीतिज्ञों की मौजूदगी में इसे निकाला गया था.

10 हजार शब्दों में पिरोया इतिहास
एक पोस्ट के मुताबिक, 1970 के समय में सरकार ने कई साहसी कदम उठाए थे. इस वजह से इंदिरा गांधी का कद काफी बढ़ गया था. इतिहास को संजोने के लिए इंदिरा गांधी ने कांग्रेसियों की एक छोटी सी टीम बनाई और आजादी के बाद भारत विषय को 10 हजार शब्दों में पिरोने को कहा. इस दस्तावेज को कुछ अन्य दस्तावेजों के साथ लाल किले के साथ दफना दिया गया. इसको लेकर विवाद हो गया था. जब सरकार ने यह जवाब नहीं दिया कि उसमें क्या लिखा था तो मामला बढ़ गया. इस मामले को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में भी उठाया था लेकिन सरका्रर की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. इमरजेंसी के बाद जन्ता पार्टी की सरकार सत्ता में आई और टाइम कैप्सूल जमीन से निकाला गया.

क्या होता है यह टाइम कैप्सूल
टाइम कैप्सूल एक कंटेनर की तरह होता है, जिस पर मौसम को कोई असर नहीं होता है. इसे जमीन के काफी अंदर तक गाड़ दिया जाता है. यह एलॉय, पॉलिमर्स और पाईरेक्स जैसी सामग्रियों से बनता है. यह वैक्यूम सील्ड होता है. हजारों साल तक जमीन में गड़े रहने के बावजूद इनको कुछ नुकसान नहीं पहुंचता है.
Postmortem रिपोर्ट: पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी 15 अगस्त 1973 को लाल किले के सामने एक टाइम कैप्सूल को दफन किया था. हालांकि, इसे करीब सवा चार साल बाद ही जमीन से निकाल लिया गया था. इसके अंदर क्या था, इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई.
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