क्या सन् 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर वाराणसी में गणपति के प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगी थी? क्या अखिलेश यादव के कहने पर अविमुक्तेश्वरानंद और उनके सेवकों को पुलिस ने पीट—पीटकर अधमरा कर दिया था. क्या यह सब मुस्लिमों को खुश करने के लिए किया गया था? इसके बाद क्या अखिलेश यादव ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से माफी मांगी थी?
कुछ इस तरह के दावों के साथ 2.20 मिनट का एक वीडियो सामने आया है. इसमें कहा गया है कि ये वीडियो 2015 का है, जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हुक्म पर वाराणसी में गणेश जी की प्रतिमा विसर्जन के समय द्वारिका पुरी के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी अविमुक्तेश्वरानंद और उनके सेवकों को मार-मार के अधमरा करवा दिया था, क्योंकि मुस्लिमों को खुश करना था. वीडियो में आप देख सकते हैं कि स्वामी जी ने लाठी खाने और धक्का दिए जाने के बाद भी अपना धर्म दंड और ध्वजा को नहीं छोड़ा. धूर्त अखिलेश यादव अपना हिंदू वोट बैंक खिसकता देखकर आज उन्हीं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से माफी मांग रहा है. स्वामी जी ने तो उसे सहज ही क्षमा कर दिया मगर क्या जनता माफ करेगी?
वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस कुछ संतों और उनके अनुनायियों पर लाठीचार्ज कर रही है. The News Postmortem से इस वायरल मैसेज व वीडियो की सत्यता जानने की गुजारिश की गई.

हमने वीडियो में से कुछ तस्वीर निकालकर गूगल पर रिवर्स इमेज की प्रक्रिया से इसको तलाशा. हमें 12 अप्रैल 2021 को एक ट्वीट भी मिला. @JhaGunjesh ने इस वीडियो और अखिलेश यादव व शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती की मुलाकात का ट्वीट पोस्ट करते हुए लिखा था,
2015 में प्रतिमा विसर्जन के समय इन्हीं स्वरूपानंद जी के उत्तराधिकारी अविमुक्तेश्वरानंद जी का आपने मारके हालत खराब कर दिया था. आज वहां बैठकर शर्म नहीं आ रही आपको? पिता ने CM रहते अयोध्या में गोलियां चलवाईं और बेटा CM रहते काशी में लाठी. आपको याद आ जाए इसलिए वीडियो भी डाल रहा हूँ.
हमें कुछ खबरों के लिंक भी मिले. घटना 22 सितंबर 2015 की है. दैनिक जागरण के मुताबिक, मामला वाराणसी के गोदौलिया चौराहे का है. गणपति की मूर्ति को गंगा में विसर्जित करने की मांग को लेकर वहां धरना चल रहा था. पुलिस के कहने पर जब लोग नहीं हटे तो लाठीचार्ज कर दिया गया. इसमें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद समेत 40 लोग घायल हो गए. लाठीचार्ज के बाद धरना दे रहे लोग गलियों की ओर दौड़ पड़े. कुछ देर बाद आंदोलनकारियों ने पुलिस पर पथराव कर दिया. इससे पुलिस की गाड़ियों को नुकसान पहुंचा. देर रात पुलिस ने गणेजी जी की मूर्तियों को लक्ष्मी कुंड में विसर्जित कर दिया. इस मामले में पुलिस ने दशाश्वमेध थाने में 24 नामजद समेत एक हजार लोगों पर केस दर्ज किया था.

आज तक के मुताबिक, हाईकोर्ट ने गंगा नदी में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई थी. इस वजह से प्रशासन मूर्ति विर्सजन को रोक रहा था. धरना दे रहे लोग जब नहीं माने तो पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा था. इसके बाद 24 सितंबर को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने विरोधस्वरूप वाराणसी के केदार घाट पर गंगा की मिट्टी से बनी गणपित की मूर्ति का विसर्जन किया था. इस दौरान प्रशासन वहां मौजूद रहा था. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने लाठीचार्ज की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश भी दे दिए थे.

इस साल अप्रैल में अखिलेश यादव ने जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से मुलाकात की थी. 24ghanteonline के अनुसार, हरिद्वार में हुई मुलाकात के दौरान अखिलेश यादव ने लाठीचार्ज के लिए माफी भी मांगी थी.
अमर उजाला के अनुसार, माफी मांगने पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का कहना था कि उनके मन में पछतावा था. गलती किसी से भी हो सकती है. इसको मानकर सुधार करना महत्वपूर्ण है.
दरअसल, अक्तूबर 2012 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना में मूर्तियों के विसर्जन पर रोक लगाई थी. इसके पीछेवजह बताया गया था. प्रदूषण को मगर प्रशासन के पास कोई वैकल्पिक प्रबंध नहीं होने की वजह से कुछ शर्तों के साथ विसर्जन की अनुमति दी गई थी. विसर्जन से पहले और बाद में प्रदूषण की तुलनात्मक रिपोर्ट में पाया गया था कि विसर्जन के बाद प्रदूषण की मात्रा कई गुना बढ़ जाती है. इसके बाद हाईकोर्ट ने इस पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी.
Postmortem रिपोर्ट: अक्टूबर 2012 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा और यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी थी. इसकी वजह गंगा और यमुना में बढ़ते प्रदूषण को बताया गया था. 2015 में जब सपा के अखिलेश यादव की सरकार थी तो स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और कुछ अन्य संत गंगगा में गणपति विसर्जन पर अड़ गए थे लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के कारण प्रशासन ने इसकी अनुमति नहीं दी थी. इस वजह से पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. इसमें अखिलेश यादव सरकार को कोई हाथ नहीं था. हालांकि, बाद में इसकी जांच के आदेश भी दिए गए थे और अखिलेश यादव ने माफी भी मांगी थी.