सोशल मीडिया पर एक ब्रिज की फोटो काफी तेजी से वायरल हो रही है. दावा किया जा रहा है कि यह मुंबई के बांद्रा का पुल है, कोई अमेरिका, फ्रांस या लंदन का ब्रिज नहीं है. इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को श्रेय दिया जाता है मतलब उनके कार्यकाल में इसकी शुरुआत हुई और इसको बनवाने का श्रेय भी उनको ही जाता है. The News Postmortem को इसकी सच्चाई जानने के लिए कहा गया.
घनश्याम कुमार नाम से बने ट्विटर अकाउंट से इस फोटो को ट्वीट किया गया है. साथ में लिखा है,
यह कोई अमेरिका, फ्रांस, लंदन या दुबई का ब्रिज नहीं है. यह बांद्रा के मुंबई का ब्रिज है. वाह मोदी जी वाह.
मोदी है तो मुमकिन है
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सत्य सनातन ट्विटर अकाउंट से भी इस फोटो को ट्वीट किया गया. साथ में लिखा गया,
यह कोई अमेरिका, फ्रांस, लंदन का ब्रिज नहीं है. यह बांद्रा के मुंबई का ब्रिज है. वाह मोदी जी
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कई और सोशल मीडिया यूजर्स ने इस फोटो को पोस्ट करते हुए इस ब्रिज का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया.


हमने इसकी पड़ताल के लिए सबसे पहले रिवर्स इमेज प्रोसेज को ट्राई किया. इससे पता चला कि यह राजीव गांधी सी लिंक की फोटो है. यह मुंबई में स्थित है. इसका मतलब है कि यह सच है कि शानदार पुल मुंबई में है.

ज्यादा जानकारी के लिए हमने विकीपीडिया को देखा. इसके मुताबिक, राजीव गांधी सी लिंक (Rajiv Gandhi Sea Link) को बांद्रा वर्ली (Bandra–Worli Sea Link) भी कहते हैं. यह 5.8 किलोमीटर लंबा है. 8 लेन का यह पुल मुंबई के पश्चिमी छोर बांद्रा को दक्षिणी भाग वर्ली से जोड़ता है. यह पश्चिमी छोर को मुंबई के नरीमन प्वाइंट से जोड़ने की योजना का एक हिस्सा है. इस पुल को महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (MSRDC) ने मंजूरी दी थी और इसे हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने बनाया है. इसकी नींव 1999 में तत्कालीन शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने रखी थी. इसका शुरुआती लागत 6.6 बिलियन यानी 660 करोड़ रुपये थी. इसका लक्ष्य पांच साल का रखा गया था. कुछ अड़चनों के चलते यह पांच साल लेट हो गया. इस वजह से इसकी अनुमानित लागत 16 बिलियन यानी 1600 करोड़ रुपये हो गई. इसके बनने से बांद्रा और वर्ली के बीच की दूरी कम हो गई. अक्टूबर 2009 में इस पर से रोजाना औसतन 37500 वाहन निकलते थे.

1 जुलाई 2009 को वन इंडिया में छपी खबर के अनुसार, तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार ने इस ब्रिज का नाम राजीव गांधी सेतु रखने का प्रस्ताव दिया था. उस समय राज्य में कांग्रेस व एनसीपी की सरकार थी. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने शरद पवार का प्रस्ताव मान लिया और इसका नाम राजीव गांधी सी लिंक हो गया. इसका उद्घाटन यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने किया था.

Postmortem रिपोर्ट: 14 मार्च 1995 से 17 अक्टूबर 1999 तक महाराष्ट्र में शिवसेना—भाजपा की सरकार थी. अक्टूबर में यहां एनसीपी—कांग्रेस की सरकार बनी थी. हालांकि, बांद्रा—वर्ली सी लिंक की नींव बाला साहेब ठाकरे ने रखी थी. इसके बाद 2009 में इसका उद्घाटन सोनिया गांधी ने किया था. उस समय केंद्र में भी यूपीए की सरकार थी. मतलब इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई योगदान नहीं है.