पूरे देश में भाई-बहन के प्यार का पर्व रक्षाबंधन मनाया जा रहा है, लेकिन कोरोना के कारण लोग उतने उत्साह के साथ यह त्यौहार नहीं मना पाए जैसा कि मनाते आते थे. वहीं इसके उलट आज माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर एक अजब ही ट्रेंड चल पड़ा. इसमें #Mughals नाम से एक ट्रेंड चला, जिसमें इतिहासकार राणा सफवी को निशाना बनाया गया. उन पर रक्षाबंधन की व्याख्या को लेकर कई यूजर ने आरोप लगाए, जिसका उन्होंने तर्कों के साथ जवाब भी दिया.
3 अगस्त को सुबह से ही True Indology नामक ट्विटर यूजर ने एक पोस्ट डाला, जिसमें उन्होंने इतिहासकार राणा सफवी के एक आर्टिकल को पोस्ट करते हुए उन्हें निशाना बनाया और उन्हें दुश्मन इतिहासकार बताया. लिखा कि मुगलों ने 18वीं सदी में रक्षाबंधन की शुरुआत की थी. अंग्रेजी में एक मैसेज भी छोड़ा है. इस ट्वीट को 12 हजार से ज्यादा लोग लाइक और 6 हजार से ज्यादा रिट्विट कर चुके हैं. अंग्रेजी में मैसेज यह है.
This “eminent historian” declares that Mughals invented Rakhi in 18th century. Such blatant lies contradict every available primary source. Anyone having elementary knowledge would laugh at these factually incorrect lies. But in India such authors are promoted by establishment
इतिहासकार राणा सफवी को साधते हुए यह ट्रेंड वायरल होने लगा. खुद सफवी को आकर अपनी सफाई देनी पड़ी. उन्होंने अपने ट्वीट में इसको लेकर लिखा कि यह लेख 1885 मुगल दरबारी मुंशी फैजुद्दीन ने अपनी किताब बज्म-ए-आखिर में लिखा था. उन्होंने इसका 2018 में अनुवाद किया था. इसे हिन्दुस्तान टाइम्स ने छापा था और एक गलत शीर्षक लगाने की वजह से ऐसा हुआ. उन्होंने सम्पादक को इस बारे में पत्र लिखकर इसे सही करने को भी कहा था.
यही नहीं राणा सफवी ने इस सम्बन्ध में मिंट प्रकाशित सुधरा हुआ लेख भी ट्विटर यूजर के सामने रखा. जिसमें उन्होंने सभी को ये पढ़ने की सलाह दी.
जो पोस्ट वायरल हो रही है, उसका शीर्षक था कि कैसे मुगलों ने दिल्ली में रक्षाबंधन को जन्म दिया. इसमें 1759 में मुगल सम्राट आलमगीर द्वितीय की कहानी है, जिसमें उसके वजीर गाजी उद्दीन खान ने साजिश के तहत उसकी हत्या की थी. उसके शव को एक हिन्दू महिला ने सम्मान पूर्वक दफनाया. तब सम्राट के उत्तराधिकारी ने उस महिला को बहन बताते हुए राखी बंधवा ली. इतिहासकार राणा सफवी के मुताबिक, उन्हें पहले भी सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था. फ़िलहाल उनका इरादा अभी किसी की भावनाएं आहत करने का नहीं रहा है.
Postmortem रिपोर्ट: सोशल मीडिया पर इतिहासकार राणा सफवी को लेकर जो आरोप लगाए जा रहे हैं, वो पूरी तरह सही नहीं हैं. अखबार में गलत शीर्षक लगने से इस तरह का भ्रम फैला, जिसे बाद में सुधारा गया. यानि ये पोस्ट पूरी तरह सही नहीं है.